विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती को शत् शत् नमन
सुधा बजा़ज
संभाजी नगर (औरंगाबाद)
हरि ओम!
गुरू माँ के चरणों मे सादर प्रणाम
गुडी पाड्वा के पावन अवसर पर हमें माँ द्वारा श्री शारदा स्तोत्र की व्याख्या सुनने का अवसर प्राप्त हुआ।
हम माँ शारदा को प्रणाम करते हैं, जो हिमालय में वास करती हैं। काश्मीर पुर वासनी, अर्थात, आप का वास सबसे ऊपर है। हमे माँ सरस्वतीजी को श्रेष्ठ स्थान देना चाहिए। हमारी संस्कृति में हिमालय की बड़ी महिमा है क्योंकि श्रीमद् भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, कि मैं पर्वतों में हिमालय हूँ।
हम माता से प्रार्थना करते हैं कि हमें वे विद्या का दान दें। हमारी बुद्धि के सारे द्वार बंद है। हम वेदों का अध्ययन नहीं कर सकते। हम जितने भौतिकता में आसक्त होते हैं, हमारी बुद्धि भी उतनी ही स्थूलता में रहती है। इसलिए मैं माँ सरस्वतीजी से प्रार्थना करती हूँ, कि वें अपरिवर्तित रूप से हमें विद्या का दान दें। ऐसी विद्या जिसे हम कार्य रूप में परिणत कर सकें जिससे हम अपने आप को ऊपर उठा सके। इंद्रियों की आसक्ति के कारण ही हाथी, मीन, हिरण इत्यादि मरते हैं। हमारे पास तो पांचों इंद्रियाँ एक साथ है।
माँ शारदा के कई नाम है श्रद्धा, धारणा, मेधा, वाग्देवी आदि। माँ शारदा ब्रह्मा जी की प्रिया है। विधि बल्लभा भी श्री माता सरस्वती का एक सुंदर नाम है।
सृष्टि के समय हमें सच को धारण करने की शक्ति अनिवार्य है। हमारा विचार अहंँकार से प्रेरित है, हमारी वाणी में संस्कार नहीं है। षट् संपत्ति को अपनाना जरूरी है। अगर हम षट् संपत्ति को अपने अंदर जागृत करते हैं तो हमें जगत आसक्त नहीं कर सकता ।
माता सरस्वती हमारी वाणी को सुसंस्कृत बनाती हैं । हम अंधकार में रहते हैं - अंधकार यानी मृत्यु। अंधकार का दमन करने वाली माँ भवानी है। आप इस भवसागर के दु:ख को दूर करने वालीं हैं । हम आप को शत्-शत् नमन करते है। आप भद्रकाली हैं क्योंकि आप काल का हरण करने वाली हैं। आप सब का सार है, आप अनंत हैं, अनादि हैं । आप वेदों को जानने की शक्ति हैं, आप विद्या के स्थान पर प्रतिष्ठित है।
आप पर-ब्रह्म के प्रकट रूप हैं। आप सनातन हैं, आप चित्स्वरूप की ज्योति हैं, आप सभी विद्याओं की अधिष्ठात्री हैं, आपको प्रणाम।
आपके बिन, समस्त सृष्टि होते हुए भी मृत के समान है।आपके बिना जो बोल भी रहा है वह मूक के बराबर है। आप वाक शक्ति देवी की अधिष्ठात्री हैं, आपको बार-बार नमन।
प्रणाम