Sreemad Bhagawad Geeta
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पवित्र नदी गोदावरी में पुष्पों का विसर्जन

सुधा बज़ाज़
छ. संभाजी नगर (औरंगाबाद)

हरि ॐ  माँ । आपके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।            

श्रीमद् भागवत् महापुराण ज्ञान यज्ञ की समाप्ति के बाद गुरूमाँ के निर्देशानुसार हम सब गुरूमाँ एवं मनीष जी के साथ पवित्र नदी गोदावरी, जो भारत की प्रमुख नदियों में से एक है, वहाँ ८ दिनों से एकत्रित पुष्पों का विसर्जन करने के लिए गए। पुष्प विसर्जन का उद्देश्य यह था कि हमने जो फूल प्रभु को 'इदं न मम' के भाव से अर्पित किए थे, उन सब को एकत्रित कर हमने समष्टि में मिला दिया।

हमारी संस्कृति में गोदावरी को माँ गंगा के समान पवित्र माना गया है । लोग इसे दक्षिण की गंगा भी कहते हैं । यह पवित्र नदी छ. संभाजी नगर (औरंगाबाद) में प्रवरा नदी से मिलती है, अतः इसे प्रवरा संगम भी कहते हैं।

नौका में सवार हो कर हम सभी, नदी के मध्यस्थ संगम स्थल पर पहुंचे। गंगा स्तोत्र को लहरों सी मधुर धुन में संजोते हुए, हमें एक पवित्र वातावरण की अनुभूती हुई। गुरूमाँ के निर्देशानुसार हमने गोदावरी माँ को प्रणाम कर, उन्हें पुष्प अर्पण कर, अपने शीश पर उनका पवित्र जल डाला। गुरूमाँ सतत हर हर गंगे का उच्चारण कर रहे थे। नदियों की महता बताते हुए गुरूमाँ ने बताया कि प्रवेश करने के पहले हमें उन्हें उगम दिशा में प्रणाम करना चाहिए। फूल विसर्जन करते समय हमने देखा कि सूर्य भगवान अपनी लालिमा बिखरते हुए अस्त होने की तैयारी कर रहे हैं। संध्या के समय गायत्री महामंत्र की महिमा बताते हुए हमने माँ के साथ गायत्री जप किया। यह अनुभव मेरी सोच के परे था । प्रकृति शांत थी। पानी का बहाव धीमा था ।

हमारी नदियां हमारी धरोहर हैं, हमारी माँ हैं । हम जितनी श्रद्धा भगवान पर रखते हैं, उतनी ही श्रद्धा उनके उपर चढाई सामग्री पर होनी चाहिए।

श्रीमद भागवत सप्ताह की अनेकों अनमोल सीखों में, यह पुष्प विसर्जन गुरू माँ की छत्रछाया में प्राप्त वो अनुभव है जिससे इस महायज्ञ की पूर्णता का आभास हुआ। गुरुओं का दिखाया मार्ग ही वास्तव में सत् का मार्ग है। 

गुरू माँ को शत शत प्रणाम।