आषाढ़ का आनंद
शिरीष यावलकर
इंदौर, मध्यप्रदेश
सादर प्रणाम् I
पिछली बार जुलाई २०१९ में श्री गुरु माँ के सान्निध्य का लाभ प्राप्त हुआ था और आगामी अप्रैल २०२० में होने वाले कार्यक्रम में आने की तैयारी थी, तभी कोरोना की कालिमा ने समूचे विश्व को एक अभूतपूर्व संकट में झोंक दिया और मानो पृथ्वी की रफ्तार पर ही रोक लग गई।
उसके बाद अगले दो वर्षों तक श्री गुरु माँ से भेंट का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। पिछले दिनों गुरु माँ से मिलने की इच्छा स्फुरित हुई, तब पता चला कि गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर एक दिवसीय शिविर प्रस्तावित है। मुझे इसमें दैवी विधान दिखने लगा। यह अवसर खोना अनुचित होता, अतएव मैने तत्काल शिविर पहुंचने का निश्चय कर लिया। श्री गुरु माँ ने पूर्व में निर्देशित किया था कि कभी सपत्नीक भी आएं। मैने श्रीमती जी से अनुरोध किया और ईश्वर की ऐसी कृपा कि उनकी भी सहमति मिल गई। सारे लक्षण शुभ ही दिख रहे थे, लगता है कि श्री गुरु माँ की ही कुछ ऐसी इच्छा रही होगी!
इस बार गुरु माँ ने श्री गुरु पौर्णिमा के पावन अवसर पर, आदिगुरु श्री दत्तात्रेय जी के श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध के अवधूतोपाख्यान को आधार बनाकर, हमारे विषय और इंद्रियाँ यदि हमारे नियंत्रण में नहीं रहे, तो कैसे हमारी मृत्यु का कारण बन सकते हैं, इस विषय में अपनी चिंतन सुधा में हमें अवगाहन कराया।
श्रीमद्भागवत के साथ साथ मुण्डकोपनिषद्, विवेक चूड़ामणि, श्रीमद्भगवद्गीता, पतंजलि योगसूत्र, अष्टावक्र गीता आदि अन्य श्रेष्ठ ग्रंथों से भी समर्थन प्राप्त कर ये बताया कि कैसे जीवों में शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध में से एक इंद्रिय का आकर्षण भी उनके घोर मृत्यु का कारण बन जाता है, तो हम मनुष्यों में तो सभी पांच इंद्रियों के प्रति जबरदस्त आकर्षण है, तो हमारी दारुण मृत्यु की संभावनाएं उतनी गुना और बढ़ जाती हैं।
पूरे दिन यह अध्यात्म गंगा प्रवाहित रही।
सायंकाल श्री मनीष जी के जन्मदिवस के उपलक्ष में जो आनंद का मेला सजा, उसे हम कभी नहीं भूल पाएंगे। मनीष जी ने अपनी उर्जा से और अपने प्रफुल्लित मनोदशा से हम सबको "चैतन्य" कर दिया।
अगले दिन दि. ३ जुलाई को गुरु पूजन का दिव्य और भव्य कार्यक्रम हुआ और हम सब उससे सराबोर हो गये।
सबसे बड़ी बात ये है कि मेरी श्रीमती जी, जो कि न केवल यहां आश्रम में पहली बार आईं थीं बल्कि जीवन में पहली बार ऐसे किसी आध्यात्मिक शिविर में भाग ले रही थीं, उन्हें भी सारा वातावरण बहुत पसंद आया और श्री गुरु माँ के प्रति मन में ढेर सारी श्रद्धा लें, वो आश्रम से निकली।
निकलने से पहले मन में यही भाव था कि श्री गुरु माँ के दर्शन तो हुए लेकिन सान्निध्य और दिन चलता तो संतोष होता। श्री माँ ने आश्वासन दिया है कि ऐसा ही करेंगे।
श्री गुरु माँ के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम के साथ मनोगत को विराम देता हूं।
हरि ओम् |