गुरू गुण लिखा न जाए
सुधा बज़ाज
छ. संभाजी नगर (औरंगाबाद)
श्रीव्यास पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में हमने माता के मुखारविंद से श्री गुरूस्तोत्र की व्याख्या सुनी। निम्नलिखित शब्द, माँ द्वारा दिये गये अनमोल सीखों को व्यक्त करने का एक विनम्र प्रयास हैं।
माँ ने कहा कि प्रारब्ध से जाति मिलती है, आयु एवं भोग। गुरूकृपा के माध्यम से हम अपनी आयु एवं भोग को बदल सकते हैं । धर्म के आधार पर जो भोग करते हैं, गुरू उसे योग में बदल देते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरू का स्थान महत्वपूर्ण है। चिंतामणि हमें भौतिक सुख दे सकती है, कल्पवृक्ष स्वर्ग का सुख देते हैं और गुरू मोक्ष का द्वार खोलते हैं ।
हमें प्रवृत्ति में भी निवृत्ति जैसा कार्य करना चाहिए, विरक्त जीवन जीने के लिए हमें विरक्त भाव से कार्य करना चाहिए। गुरू ज्ञान रूपी अंजन की सलाखों से हमारे अज्ञान रूपी चक्षु को खोल देते हैं। सत्ता सत्य की चलनी चाहिए। चतुश्लोकी भागवत में श्री भगवान के अनुसार बताये मार्ग से हमें सृष्टि करनी चाहिए। गुरू सृष्टि, स्थिति एवं प्रलय के देवता हैं ।वे समस्त चराचार में व्याप्त हैं । माया के पास हमारी सत्ता है। जब हमारे मन में प्रभु की सत्ता होगी तभी हमारा कल्याण होगा। माया दो प्रकार से काम करती है - क्रिया शक्ति और चैतन्य शक्ति । चौथे श्लोक में क्रिया शक्ति के बारे में बताया है और पांचवे में माया की चैतन्य शक्ति के बारे में। गुरू श्रुति के शिरोरत्न हैं। उनका कथन वेदान्त की भाषा है। वेदांत के कमल को खिलाने वाले सूर्य रूपी गुरू को प्रणाम।
वेदांत समझने के लिए हमें सूक्ष्मता की ओर जाना चाहिए। हमारा अंत:करण शुद्ध होना चाहिए। गुरू ज्ञान शक्ति में आरुढ हैं, तत्व माला से विभूषित हैं। यह तत्व माला श्रुतियों और शास्त्रों की है। गुरू के चरणों के संपर्क में रहने से अनेक जन्म के कर्म बंधन जल जाते हैं। गुरू आत्मज्ञान की वर्षा करते हैं। भवसागर रुपी संसारको गुरू चरण की कृपा से ही पार कर सकते हैं।
"सत् धारयति इति श्रद्धा" - सत् को धारण करने की शक्ति को ही श्रद्धा कहते हैं। गुरू हमारे अहंकार को नाथ लेते हैं। वह हमारे अहंकार का दमन करते हैं। गुरू हमारी आत्मा में व्याप्त हैं। गुरू आदि भी हैं, अनादि हैं| बीच में भी जो भी दिख रहा है वह गुरू की दिव्यता ही है।
परमानंद परम सुख देने वाले अद्वितीय ज्ञान मूर्ति श्री गुरू को मेरा कोटि कोटि प्रणाम। माँ, आपके चरणों में मेरा प्रणाम। माँ, आपके आशीर्वाद से मेरी प्रीत एवं श्रद्धा गुरू चरणों में सदैव दृढ रहे।