मेरी अविस्मरणीय तीर्थयात्रा
सुधा बज़ाज
छत्रपति संभाजी नगर (महाराष्ट्र)
श्री मनीष जी के मधुर सहयोग से कार्तिक पूर्णिमा की पावन वेला में एकत्रित भक्तों ने हरिद्वार की यात्रा का
कार्यक्रम बनाया। मेरा सौभाग्य था — कि पहली बार माता जी और मनीष जी की दिव्य संगति में
मैं इस पवित्र तीर्थयात्रा पर निकली। उनकी कृपा, उनकी उपस्थिति, हर कदम को एक आशीर्वाद बना रही
थी। यात्रा-योजना सचमुच अद्वितीय, और सुव्यवस्थित थी। यात्रा की शुरुआत से लेकर हर छोटे से छोटे
पड़ाव तक—कहाँ हमें रुकना है, कौन किस गाड़ी में बैठेगा, किस समय किस दिशा में प्रस्थान करना है—इन
सभी बातों की उन्होंने ऐसी सूक्ष्मता से व्यवस्था की, कि हम सभी निश्चिंत होकर सिर्फ अनुभव को जीते चले
गए।
गाड़ी में बैठने से पहले ही माँ जी ने हमें हनुमान चालीसा और श्री गुरु स्तोत्र एवं ओम नमः शिवाय जप का
निर्देश दिया, जिससे यात्रा का वातावरण पवित्र और शक्ति से भर गया। गाड़ी में बैठने के पहले हर वाहन
चालक को मां ने उचित निर्देश दिए । माँ के निर्देशों में एक आत्मीयता और अनुशासन दोनों का अद्भुत
समन्वय था। व्यवस्था, स्वतंत्रता और पवित्र ऊर्जा—इन तीनों का वातावरण देखकर मैं मन ही मन धन्य हो
उठी।
निर्धारित समय पर हम हरिद्वार पहुँच गए। दोपहर १२ बजे हम श्री गंगा स्नान के लिए हर की पौड़ी पहुँचे।
गंगा माता अपनी अविरल, निर्मल और दिव्य धारा के साथ भक्तों को आलिंगन कर रही थीं। घाट पर पहुँचते
ही माँ जी ने हमें श्री गंगा स्नान से पूर्व, स्नान के दौरान और स्नान के बाद पालन करने योग्य महत्वपूर्ण
नियमों और आचरण की बातें समझाईं—हर शब्द में प्रेम, ज्ञान और परंपरा की सुगंध थी।
श्री गंगा जी की महिमा बताते हुए माँ जी ने कहा कि, हमारे पूर्वजों की अनुकंपा और उनके आशीर्वाद के
बिना यहाँ पहुँचना संभव ही नहीं था। यह सुनते समय हृदय में एक विनम्रता, एक कृतज्ञता की लहर उठी।
श्री गंगा स्नान का अनुभव मेरे जीवन के उन दुर्लभ क्षणों में से एक था, जिसे शब्दों में बाँधना लगभग
असंभव है। जैसे ही मां, मैंने गंगाजल से आपके चरण पखारे, मेरी आँखें नम हो गईं। भीतर एक अनोखी
शांति उतर आई—मानो मन का भारीपन उसी क्षण श्री गंगा प्रवाह में समर्पित हो गया। माँ जी के सान्निध्य
में शांत और सहज रहने का जो मार्ग मैंने सीखा है, वह इस अनुभव के साथ और भी गहरा हो गया।
रक्षा सूत्र बाँधते समय ऐसा लगा कि मैंने स्वयं को पूर्णतः श्री गुरु परंपरा की शरण में सौंप दिया है।
प्रार्थना करते हुए जिंदल परिवार का नाम मन में आना भी मेरे लिए अप्रत्याशित था। माँ, हाल ही में मैंने
ऋषिकेश की यात्रा की जिसका उल्लेख मैंने प्रश्न उत्तर के समय किया। मुझे लगा कि इससे सुंदर अनुभव हो
ही नहीं सकता परंतु यह अनुभव तो अवर्णनीय है।
७ तारीख को हम आश्रम पहुँचे, और यहाँ का वातावरण मानो हमारी यात्रा का दिव्य समापन था—यहाँ
शरीर को विश्राम, मन को शांति और आत्मा को दिशा मिलती है।
हरि ॐ!